कुछ शिकवे हैं तुझसे मेरे
और थोड़ा-थोड़ा प्यार भी है
इश्क़ पर ज़ोर है किसका
ग़ालिब की बात का इक़रार भी है
एक अफ़साना मैंने लिखा था
जिसमें दो दीवाने थे
एक तुम थी, एक मैं था
दोनों ही अन्जाने थे
खोये-खोये-से रहते थे
किरदार निभाते डरते थे
बात ज़ुबाँ तक लाते थे
और साफ़ मुक़रते थे
कुछ शिकवे हैं तुझसे मेरे, और
थोड़ा-थोड़ा प्यार भी है…
बीते पन्ने पलटकर देखो
वह अफ़साना आज भी है
वो ही तुम हो, वो ही मैं हूँ
और कोई अन्जान नहीं है
आधी ख़ाली रात पड़ी है
आधा-आधा चाँद भी है
बीता हुआ है कोई टुकड़ा
दोनों को इसका एहसास भी है
कुछ शिकवे हैं तुझसे मेरे
और थोड़ा-थोड़ा प्यार भी है
इश्क़ पर ज़ोर है किसका
ग़ालिब की बात का इक़रार भी है
शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: २००२