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मेरा गीत

मुझ को आज भी तुम्हारा इन्तज़ार है

मुझ को आज भी तुम्हारा इन्तज़ार है
वही तड़प है, दिल उतना ही बेक़रार है

तेरी हँसी और हया के लिए मेरी आँखों में
जानम आज तलक उतना ही प्यार है
वही तड़प है, दिल उतना ही बेक़रार है

तुमसे मिलके पतझड़ में बहार खिल जाती है
तुम बाँहों में हो तो मुझे क़रार है
मुझ को आज भी तुम्हारा इन्तज़ार है

नज़रों के वह सिलसिले ख़ामोशी की आड़ में
उनसे आज भी मुझ को इक़रार है
वही तड़प है, दिल उतना ही बेक़रार है

गुलाबी फूल फिर मुस्कुराने लगे शाख़ों में
इनमें रंग तेरा ही मेरे यार है
मुझ को आज भी तुम्हारा इन्तज़ार है


शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: २००३

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मेरा गीत

इक बार तेरा चेहरा फिर देख लूँ

इक बार तेरा चेहरा मैं फिर देख लूँ
यह उम्मीद तू बता मैं कैसे छोड़ दूँ

आ फिर आ जा इक बार फिर आ जा
सूखी आँखों से टूटे हैं टुकड़े आँसू के
मैं न कहूँगा कि तू मेरी हो जाये
तस्वीर सजाऊँ आँखों में तू जो आये

चले जाना हाँ बड़े शौक से तुम
मेरा दिल तोड़ के, इक बार आ जा
बोलते हुए कई चेहरे सुने हैं मैंने
किस तरह मैं उनसे बात कर लूँ

इक बार तेरा चेहरा मैं फिर देख लूँ
यह उम्मीद तू बता मैं कैसे छोड़ दूँ

अब के आना तो बस इक शाम
बैठी रहना रू-ब-रू, रू-ब-रू
ना कुछ कहना ना सुनना
पढ़ते रहना मेरी आँखों की ख़ुशबू

आ जा इक बार, लौट के आ जा
फिर दिल मेरा तोड़ के चली जा
इक बार आ जा, बस इक बार आ जा

कभी ख़ाब में न आना तुम
मगर कभी यादों से न जाना तुम
बस इक यही ख़्वाहिश है
मेरा दिल इक बार फिर तोड़ जा

अरमानों की डोलियाँ जला दे तू
यह ना उठें कभी ख़ाली सीने से
देखो न रोकना तुम कभी मुझे
तन्हाई पीने से, रातों में रोने से

मेरे सीने के ज़ख़्म हरे करने की
कोई नयी तरक़ीब तू ढूँढ़ के ला,
मैं पैतरे तेरे सब जानता हूँ…

इक बार तेरा चेहरा मैं फिर देख लूँ
यह उम्मीद तू बता मैं कैसे छोड़ दूँ

यह नज़्म नहीं बयाने-हाल है मेरा
तेरे सिवा किसी और तस्वीर को
तू बता मैं कैसे अपना मान लूँ…

माटी-माटी कर दे मुझे दफ़्न करके
और जियूँ तो मैं जियूँ किस तरह से

क्या चाहती हो क्यों छोड़ा है मुझे
माना मैं तेरा अपना नहीं मगर
सब कुछ ख़ामोशी क़ुबूल करता हूँ
मैं कब तुझे ख़ुद से दूर करता हूँ

आ जा इक बार आ जा फिर आ जा
मेरा दिल इक बार फिर तोड़ जा
इक बार फिर छोड़ जा मुझको अकेला
तू इन राहों पर, इन्हीं गलियों में…


शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: २००३

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मेरा गीत

यह मुनासिब नहीं मैं भुला दूँ तुझको

यह मुनासिब नहीं मैं भुला दूँ तुझको
तेरे सिवा कुछ होश नहीं है मुझको

ना जाने कितने अजनबी गुज़रे हैं
मेरे इस जिस्म की गीली मिट्टी से
किसी ने कभी न छुआ ऐसे मुझे
जिस तरह से छुआ है तूने मुझको

मैं बहुत भटका हूँ चेहरे-चेहरे
और हर दिल को झाँककर देखा है
तेरे दिल-सा नादाँ और मासूम
कोई दूसरा दिल न मिला है मुझको

तू मुझसे दूर बहुत दूर सही लेकिन
बहुत पास है धड़कते हुए दिल के
यह वही शाम है याद तो होगा
जब आँखों में लिया था मैंने तुझको

मेरे नाम से रोशन जलता हुआ शायद
कोई चराग़ तो होगा तेरे दिल में
क्या तूने तन्हाई से मज़बूर होके
आज फिर से याद किया है मुझको


शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: २००३

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मेरा गीत

तू जाके फिर ना आयी

तू जाके फिर ना आयी
मगर बार-बार आती रही तेरी याद
सबने सुनी कहानी मेरी
पर ना सुनी गयी मेरी फ़रियाद

मैं भूला नहीं तेरा चेहरा कभी
यह पागलपन है मेरा कहते रहे सभी
तेरे सपने आँखों में लेकर
मैं साथ तेरे जीता रहा तेरे बाद

तू जाके फिर ना आयी
मगर बार-बार आती रही तेरी याद

वो उजले सवेरे वो सुनहरी शामें
मैं ढूँढ़ता रहा हूँ ले-लेके तेरे नाम
आँखें राहों पर बिछाये अपनी
मैं तेरी तलाश में निकला तेरे बाद

तू जाके फिर ना आयी
मगर बार-बार आती रही तेरी याद


शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: २००३

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मेरा गीत

मैंने अक्सर खोया है उसे

मैंने अक्सर खोया है उसे
जो मेरे दिल के क़रीब आ जाता है
जब किसी की चाह में भटकता हूँ
यह दिल बहुत समझाता है

शायद इसी एक वजह से
किसी की हसरत से जी डरता है
बेपनाह प्यार करता है जिससे
तिल-तिलकर उसके लिए मरता है

कई बार मातम में ख़ुद को
सफ़ेद पोशाक पहने हुए देखा है मैंने
इसीलिए इक दीवार उठा रखी है
निगाहो-निगाहे-पनाह के बीच मैंने

हर शाम ज़हन के दरवाज़े पर
इक माज़ी की दस्तक होती है
तेरा पुराना पता पूछती ज़िन्दगी
मुझसे रोज़ ही रूब-रू होती है

वह यह बारहा कहती है मुझसे
मुझे इश्क़ है तुझसे, तुझी से
और मैं आँख चुराके कहता हूँ
मुझे इश्क़ नहीं तुझसे, किसी से

क्यों चली आयी है इस राह
ख़ुशबू के आवारा बादल की तरह
कि नाचीज़ का दिल काला है
तेरी आँखों के काजल की तरह


शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: २००३