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मेरा गीत

आज यह दुनिया बहुत ख़ूबसूरत है

आज यह दुनिया बहुत ख़ूबसूरत है
जब तुम हो फिर किसकी ज़रूरत है

देखो नीले आसमाँ पर चाँद खिल गया
सनम मुझको जब तेरा साथ मिल गया
अब रात-दिन आँखों में तेरी सूरत है
आज यह दुनिया बहुत ख़ूबसूरत है

रंग-बिरंगे फूल, हर-सू खिलते हैं
जब दो प्यार करने वाले मिलते हैं
आ प्यार करें, क्या ख़ूब महूरत है
आज यह दुनिया बहुत ख़ूबसूरत है

उस दिन जब तुम गुलाबी लिबास में थी
यूँ लगा जैसे कोई कली ख़ुशबाश में थी
तेरे लिए दिल में हर पल अक़ीदत है
आज यह दुनिया बहुत ख़ूबसूरत है

मेरी नज़र ने सनम जो तुझे छू लिया
एक अजनबी-सा ख़ाब सच कर लिया
अब यूँ ही होती मुझको मसर्रत है
आज यह दुनिया बहुत ख़ूबसूरत है

मसर्रत: ख़ुशी, happiness । हर-सू: सभी तरफ़, in vicinity


शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: २००४

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मेरा गीत

तुम आये क्यों जब तुम्हें जाना ही था

तुम आये क्यों जब तुम्हें जाना ही था
मुझसे दूर जाकर मुझे भुलाना ही था
बदली-बदली फ़िज़ा में कुछ अपना लगा
यह मौसम तो इक रोज़ आना ही था

इसे क्या कहूँ, क्या प्यार का नाम दूँ
तू अगर मिले मुझे तेरा हाथ थाम लूँ
मेरी एक यही ख़ाहिश है यही तमन्ना
इस ख़ाहिश ने मुझको रुलाना ही था

तुम आये क्यों जब तुम्हें जाना ही था
मुझसे दूर जाकर मुझे भुलाना ही था

तेरा नाम लूँ तो सुकूँ आता है कुछ-कुछ
तुम मिलने आओ कभी मुझसे सचमुच
हैं तेरी तस्वीर से अब बे-ताबियाँ मुझे
मुझसे साथ इनको यूँ निभाना ही था

तुम आये क्यों जब तुम्हें जाना ही था
मुझसे दूर जाकर मुझे भुलाना ही था


शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: २००४

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मेरा गीत

दर्द को दर्द का मरहम दे दे

दर्द को दर्द का मरहम दे दे
ऐ मौत न आने की क़सम दे दे

लगन यार की मन से जाये ना
दिल की तड़प काम आये ना
नहीं आता तो आने का वहम दे दे

मैं बिखर गया तेरे जाने के बाद
जाना प्यार तुझे खोने के बाद
मिलने का कोई वादा सनम दे दे

ऐ मौत न आने की क़सम दे दे…

मसला मुझे विरह की रातों ने
तोड़ा-जोड़ा मुझे बीती बातों ने
मेरी रूह को चैन हमदम दे दे

यह ख़ुमार अब आठों पहर है
ज़िन्दगी जैसे कोई ज़हर है
मुझको वही ख़ुशी का मौसम दे दे

ऐ मौत न आने की क़सम दे दे…


शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: २००४

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मेरा गीत

मैं रोज़ नयी तकलीफ़ें बुनता हूँ

मैं रोज़ नयी तकलीफ़ें बुनता हूँ
ज़िन्दगी के इस पुराने करघे पर
कि मैंने कभी सूत भी काता है
रिश्तों के इस टूटे हुए चरख़े पर

आँखें वीरान हैं दूर तक रेत ही रेत है
पानी का कहीं नामो-निशाँ नहीं है
सूरज भी उसकी मुस्कुराहट का ना आया, वो कहाँ है?
मेरी हर रात सूखकर बंजर हो गयी है

मोहब्बत मेरी अफ़साना बन गयी है
मैं रह गया हूँ इक किरदार बनकर…

बेजान यह जिस्म उघड़ने लगा है
रूह पर से सर्प की खाल की तरह
और यह मेरी रूह भी जल रही है
धधकती ख़ुशरंग आग की तरह

वह मुझे मिला था पिछली शामों को, हसीं चाँद जैसे!
उसने भी गुनाह किया है चुप रहकर


शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: २००३

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मेरा गीत

यह जिस्म नहीं है

यह जिस्म नहीं है, काँच के टुकड़े हैं
ज़मीने-वक़्त पर दूर तक बिखरे हैं
इन्हें मत छूना हाथों में चुभ जायेंगे
ये वो दिये हैं, लम्हों में बुझ जायेंगे…

My hopes are broken
My soul is bruised
but you’re loving me, why?

कब तक दीवार बनाते रहोगी तुम
दिलो-दुनिया के बीच, कुछ बोलो तो
कशमकश कोई
तुझे मुझसे न होगी
यह निहाँ राज़ तुम, मुझपे खोलो तो

My hopes are broken
My soul is bruised
but you’re loving me, why?

नहीं समझते हो अगर मेरी बात तो
आओ तुम मुझको बाँहों में थाम लो
मेरे ख़ुदा बन जाओ तुम मेरे लिए
अपने लबों से एक बार मेरा नाम
लो


शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: २००३