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मेरा गीत

कुछ तो था कुछ तो है

कुछ तो था कुछ तो है
तेरे-मेरे बीच सजनी
वरना तुम यहाँ न आती
वरना यादें तेरी न होती

यूँ बरस गुज़रते हैं
तेरे लिए तड़पते हैं
तन्हा-तन्हा रात-दिन
तेरे लिए तुम बिन

कुछ तो था कुछ तो है
तेरे-मेरे बीच सजनी…

तुमको पाना है मुझे
मुझको अपनाना है तुझे
ग़म ख़ुशी बन जायेगा
दोनों को क़रीब लायेगा

वरना तुम यहाँ न आती
वरना यादें तेरी न होती…

ख़ाब सच हो जायेंगे
हम-तुम मिल जायेंगे
प्यार होगा दरम्याँ
तेरी आँखों में मेरा जहाँ

कुछ तो था कुछ तो है
तेरे-मेरे बीच सजनी…



शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: २००४

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मेरा गीत

दिल है गुमसुम, प्यार में तेरे

दिल है गुमसुम, प्यार में तेरे, साथी मेरे’
(तुम कहाँ हो)
तुम थे’ तुम हो’ जान मेरी, मेरी ज़िन्दगी’
(तुम कहाँ हो)

हुए तुम मुझ से जुदा, रहने लगा ख़ुद से ख़फ़ा
जहाँ भी है’ वापस लौट आ’ मैं हूँ तुझसे बावफ़ा

रूठे हुए दिन’ उदास रातें, अब मनती नहीं
(तुम कहाँ हो)

तेरी यादों की फाँस है, ज़ख़्मी हर एक साँस है
सूखी-सूखी है ज़मीं’ हर सू बरखा की प्यास है

ऊदी-ऊदी आँखों को’ आज भी इक तिश्नगी है
(तुम कहाँ हो)

राहों पे फूल बिछाती हैं ये बहारें, नज़रों को मैं
आये तू आये कभी’ करूँ पूरा’ तेरे सपनों को मैं

टूटे हुए दिल के टुकड़ों में देखूँ’ मैं सूरत तेरी
(तुम कहाँ हो)

सूरज की किरन चूमती है जब’ खिलती है कली
ज़ुबाँ पे क़तरा-क़तरा’ गलती है’ ग़म की डली

ख़ुशी परायी, हर ग़म’ अब अपना लगता है
(तुम कहाँ हो)


शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: २००४

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मेरा गीत

सहने दे ग़म थोड़ा-थोड़ा

सहने दे ग़म थोड़ा – थोड़ा
जो तुमने रुख़ मोड़ा-मोड़ा

जान यह जाने दे ज़रा-ज़रा
रहने दे आँखों को भरा-भरा

सपने सारे मेरे टूटे
जो साथी तुम मुझसे रूठे

मरना गर मेरा वफ़ा हो
तो मेरी जान क्यों ख़फ़ा हो

आना तो न जाना तुम कभी
तुमसे हैं मेरी जाँ ख़ाब सभी

साँसें बन जाओ ख़ाली सीने की
प्यास दे जाओ जीने की

दिल मेरा भी इक ख़ला है
तेरे इन्तिज़ार में जला है

ये लम्हे रोक लो तुम
फिर न आयेंगे हुए जो ग़ुम


शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: २००४

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मेरा गीत

तन्हाई में भी हम दोनों साथ हैं

तन्हाई में भी हम दोनों साथ हैं
यूँ लगता है मानो हाथों में हाथ हैं

वह पहली शाम जब देखा था तुम्हें
मैं आज तक भूला नहीं हूँ
वह पहली झलक’ वह पहली हँसी
मैं आज तक भूला नहीं हूँ

दूर होकर भी हम-दोनों साथ हैं
यूँ लगता है मानो हाथों में हाथ हैं

तुम जो आती थी’ तुम जो जाती थी
जैसे उड़ते बादलों में चाँद छिपता है
आती है बहुत तेरी याद मुझे
जब उड़ते बादलों में चाँद छिपता है

उलझे हुए दोनों के जज़्बात हैं
यूँ लगता है मानो हाथों में हाथ हैं

तुम याद आती हो मुझे इस तरह
मैं ख़ुद को भी भूल गया हूँ
तेरे सपनों में खोया हूँ आठों पहर
सारा ज़माना भूल गया हूँ

दो अन्जान मुसाफ़िर जो साथ हैं
यूँ लगता है मानो हाथों में हाथ हैं


शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: २००४

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मेरा गीत

ज़िन्दगी प्यार से प्यारी हो गयी है

ज़िन्दगी प्यार से प्यारी हो गयी है
मुझे रात-दिन तेरी ख़ुमारी हो गयी है

क्या किससे कैसे कहूँ क्या हुआ है
यह सब तेरी चाहत तेरी दुआ है
पल-पल तेरे लिए बेक़रारी हो गयी है

ज़िन्दगी प्यार से प्यारी हो गयी है
मुझे रात-दिन तेरी ख़ुमारी हो गयी है

तेरी नज़र ने उफ़ क्या जादू किया है
दीवाने का दिल प्यार में बेक़ाबू किया है
देख लो किस क़दर नाचारी हो गयी है

ज़िन्दगी प्यार से प्यारी हो गयी है
मुझे रात-दिन तेरी ख़ुमारी हो गयी है

मेरे ख़ाबों में तेरा आना जब हुआ
मेरी सीने से दिल का जाना तब हुआ
मीठे-से दर्द की बेशुमारी हो गयी है

ज़िन्दगी प्यार से प्यारी हो गयी है
मुझे रात-दिन तेरी ख़ुमारी हो गयी है

तेरी तस्वीर से बातें करने लगा हूँ
थोड़ा पागल ख़ुद को भी लगने लगा हूँ
मेरी आरज़ू बहुत बेचारी हो गयी है

ज़िन्दगी प्यार से प्यारी हो गयी है
मुझे रात-दिन तेरी ख़ुमारी हो गयी है


शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: २००४