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मेरा गीत

यह मुनासिब नहीं मैं भुला दूँ तुझको

यह मुनासिब नहीं मैं भुला दूँ तुझको
तेरे सिवा कुछ होश नहीं है मुझको

ना जाने कितने अजनबी गुज़रे हैं
मेरे इस जिस्म की गीली मिट्टी से
किसी ने कभी न छुआ ऐसे मुझे
जिस तरह से छुआ है तूने मुझको

मैं बहुत भटका हूँ चेहरे-चेहरे
और हर दिल को झाँककर देखा है
तेरे दिल-सा नादाँ और मासूम
कोई दूसरा दिल न मिला है मुझको

तू मुझसे दूर बहुत दूर सही लेकिन
बहुत पास है धड़कते हुए दिल के
यह वही शाम है याद तो होगा
जब आँखों में लिया था मैंने तुझको

मेरे नाम से रोशन जलता हुआ शायद
कोई चराग़ तो होगा तेरे दिल में
क्या तूने तन्हाई से मज़बूर होके
आज फिर से याद किया है मुझको


शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: २००३

By Vinay Prajapati

Vinay Prajapati 'Nazar' is a Hindi-Urdu poet who belongs to city of tahzeeb Lucknow. By profession he is a fashion technocrat and alumni of India's premier fashion institute 'NIFT'.

2 replies on “यह मुनासिब नहीं मैं भुला दूँ तुझको”

ना जाने कितने अजनबी गुज़रे हैं
मेरे इस जिस्म की गीली मिट्टी से
किसी ने कभी न छुआ ऐसे मुझे
जिस तरह से छुआ है तूने मुझको

kal tak mai samjhata tha ki mai kuchh hun
par aapko padh kar laga ki mai kahin nahi hun
uf aise bhi koi kisi ko mohabbat karta hai
ki uski ankh se apna chehara dekhta hai.

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