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रुबाइयाँ

हल्के-हल्के आँसू टूटे हैं मेरी आँखों से

हल्के-हल्के आँसू टूटे हैं मेरी आँखों से
अब बात नहीं बनती है तेरी यादों से

बोल तुझे इक हर्फ़ में कैसे लिख दूँ
तस्वीर नहीं बनती है कभी हर्फ़ों से

हर्फ़= word


शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: २००३

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रुबाइयाँ

उम्मीद जागी है इक बार फिर तुम्हें पाने की

उम्मीद जागी है इक बार फिर तुम्हें पाने की
बचाये ख़ुदा! नज़र न लग जाये ज़माने की

तेरी जुस्त-जू को न मिटा सका कोई वक़्त-रू
दिल में एक हसरत है सो तुम्हें पाने की

वक़्त-रू= समय का चेहरा, face of time


शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: २००३

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रुबाइयाँ

कभी यूँ भी होता है

कभी यूँ भी होता है ज़िन्दगी मिलती है खो जाती है
यह शाम उसकी यादों में मुझको डुबो जाती है

नहीं यह मुमकिन वह मिल जाये जिसे तुम चाहो
यह मोहब्बत चंद लोगों के दामन भिगो जाती है


शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: ११ अगस्त २००४

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सदियाँ कटता रहूँगा

सदियाँ कटता रहूँगा
वक़्त गुज़ारता रहूँगा
तुम जो हँसते रहो
मैं भी हँसता रहूँगा..


शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: २००२

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जो जन शाइरी का फ़न समझते होंगे

जो जन शाइरी का फ़न समझते होंगे
हम को शाइर तो न समझते होंगे
‘विनय जी’ कैसे लिखते हैं आप ऐसा
लिखने की कौन-सी तरक़ीब रखते होंगे


शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: २००२