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रुबाइयाँ

हमारी दोस्ती बहुत गहरी थी

हमारी दोस्ती बहुत गहरी थी
जिसको लोहा कहा गया था
मगर जब उतरे बर्ग़े-बहार
दोस्ताना मोर्चा खा गया था

बर्ग़े-बहार= बहार के पत्ते, मोर्चा= जंग, rust


शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: २००२

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रुबाइयाँ

जब भी तेरा नाम लेती हैं

जब भी तेरा नाम लेती हैं
बहुत ख़ुश होती हैं आँखें
मुस्कुराती हैं तेरे लबों से
कहीं ज़्यादा हसीं होके…


शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: २००२

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रुबाइयाँ

एक मैं ही था शहंशाह सारे जहाँ का

एक मैं ही था शहंशाह सारे जहाँ का
जब तलक साया था सर पे हुमा का

मेरी शिकस्त ही तक़दीर हुई मेरी
जब जाना हुआ मेरे दर से हुमा का


शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: २००३

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कुछ यूँ क़त्ल हुआ यह वक़्त

कुछ यूँ क़त्ल हुआ यह वक़्त
कि क़तराए-ख़ूँ तक न गिरा
अबकि हारे तो टूट जाये ‘नज़र’
मेरे दिलसिताँ, तेरा नाम लेकर


शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: २००३

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‘नज़र’ वह हस्ती’

‘नज़र’ वह हस्ती’ उदू उसका’ उसका नाम रटे
जो लिख दे वह नाम दिल पर कभी न मिटे
जीता है भला कौन अदू उसका उससे लड़कर
वह आँधी है जिससे बरगद का दरख़्त फटे…


शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: २००३