एक मैं ही था शहंशाह सारे जहाँ का
जब तलक साया था सर पे हुमा का
मेरी शिकस्त ही तक़दीर हुई मेरी
जब जाना हुआ मेरे दर से हुमा का
शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: २००३
एक मैं ही था शहंशाह सारे जहाँ का
जब तलक साया था सर पे हुमा का
मेरी शिकस्त ही तक़दीर हुई मेरी
जब जाना हुआ मेरे दर से हुमा का
शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: २००३