“उफ़! यह मोहब्बत भी क्या चीज़ है
कभी बोझल आँखों से ख़ूँ टपकता है
कभी नब्ज़ बुझती है साँस जलती है”
पास मेरे जो तेरी तस्वीर नहीं
हाथों में मेरी तक़दीर नहीं
जिस तरह जी रहा हूँ जानता हूँ
सीने में साँसों की ज़ंजीर नहीं
मेरी राह से दिल से गुज़रती थी
चाँद जैसे रोज़ सँवरती थी
एक तरफ़ा मैं मरता था तुम पे
क्या तुम भी मुझपे मरती थी
वह बारिश, दिन वह मुबारक़
मेरी आँखों में ठहर गया है
दुआओं से भी न लौटे तुम
दिल पे जैसे क़हर बरपा है
मेरे ज़ख़्मों पे नमक रखा है
ज़बाँ से नहीं जिस्म से चख़ा है
गलता है तन्हाई में धीरे-धीरे
एक उम्र से मेरा सखा है
हम जो बिछुड़े हैं मिलेंगे भी
मुरझाये दो चेहरे खिलेंगे भी
चाँदनी रिदा होगी हम होंगे
सिलसिले ख़ाबों के चलेंगे भी
शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: २९ मई २००३