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रुबाइयाँ

जब जीना लाज़मी हो जाये

जब जीना लाज़मी हो जाये
तो सबको सभी को मिटाके जियो
क़द कभी छोटा न हो ‘नज़र’
सबको घुटनों पर झुकाके जियो


शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: २००३

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रुबाइयाँ

मैंने आँखों को लहू का समन्दर

मैंने आँखों को लहू का समन्दर
और दिल को दस्तो-सहरा बनाया
‘नज़र’ को अय्यार पेश सैय्याद
बता तुझको क्या सज़ा मुक़र्रर हो


शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: २००३

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रुबाइयाँ

यह कारवाँ किस जगह आ रुका है

यह कारवाँ किस जगह आ रुका है
ज़िन्दगी को हासिल नहीं मिल रहा है
हमने अब तक ऐसी मुहब्बत की है
शायद जिसमें शामिल नहीं दिल रहा है


शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: २०००-२००१

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रोशनी से दीवारों के साये

रोशनी से दीवारों के साये मिटायेंगे
ढूँढ़कर वह सब लायेंगे, ढूँढ़ लेंगे
जो क़िस्मत की लकीरों में बँधा है

मुक़ाम का निशाँ हमने गढ़ा है…


शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: २०००-२००१

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ग़म देना उनकी फ़ितरत

ग़म देना उनकी फ़ितरत में शामिल होगा
मेरी फ़ितरत तो मुहब्बत देने की रही है

दूर रहना उनकी आदत में शामिल होगा
मेरी आदत तो ख़ुशबू लुटाने की रही है


शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: २०००-२००१