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रुबाइयाँ

मैं मंज़िल से दूर सही

मैं मंज़िल से दूर सही
ख़ाबों का एक घरौंदा रखता हूँ
बेवजह ही सही लेकिन
किसी से मुहब्बत करता हूँ


शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: २०००-२००१

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रुबाइयाँ

काश वह कोई गुल होती

काश वह कोई गुल होती
मैं उसे अपने लबों से चूम लेता
गर वह कोई आइना होती
मैं ख़ुद को उसमें उतार देता

इश्क़ जला है कितनी रातों तक
कोई समझता दर्द मैं बता देता


शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: २०००-२००१

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रुबाइयाँ

पलाश का फूल हूँ

पलाश का फूल हूँ
ज़िन्दगी है
ख़ुशबू से जुदा
कभी मैं जुदा
कभी तुम जुदा
और ज़िन्दगी क्या?


शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: २०००-२००१

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रुबाइयाँ

कभी हम मौसम थे

कभी हम मौसम थे
कभी ख़ुद मौसम था
सावन की चाह में
इक सावन मिला
तो दूसरा गया
आजकल अकेला हूँ


शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: २०००-२००१

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तन्हाई में गोता लगाना

तन्हाई में गोता लगाना
मेरा एक शौक़ है
ज़िन्दगी को दो राहों से देखना
मेरा एक शौक़ है
मंज़ूर है जो मुझको
वह बस तू एक है


शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: २०००-२००१