रहूँ मैं कैसे जुदा
मैं जुदा रह नहीं सकता
सहूँ मैं कैसे दर्द
मैं दर्द सह नहीं सकता
इश्क़ ने ऐसा मारा
अब मैं मर नहीं सकता
शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: २०००-२००१
Rubaa’ieyaan
रहूँ मैं कैसे जुदा
मैं जुदा रह नहीं सकता
सहूँ मैं कैसे दर्द
मैं दर्द सह नहीं सकता
इश्क़ ने ऐसा मारा
अब मैं मर नहीं सकता
शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: २०००-२००१
ऐनक उतार के ख़ुद को आइने में
कभी देखा होता
कि इक नूर का टुकड़ा हो
मेरे ख़ाबों में चुभता है जो
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ऐनक उतार के कभी
ख़ुद को आइने में देखा होता
कि इक नूर की बूँद हो
मेरी आँखों में भर आयी है जो
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ऐनक उतार के ख़ुद को कभी
आइने में देखा होता
इक नूर आँखों में उतर जाता
तुझे मालूम हो जाता
कितना हुस्न है तेरे पास
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ऐनक उतार के ख़ुद को कभी
आइने में देखा होता
तो तुम्हें मालूम होता
क्यों आजकल रात में
चाँद फीका रहता है
–x–
ऐनक उतार के ख़ुद को कभी
आइने में देखा होता
तो तुम्हें मालूम होता
हुस्न-निसार हो तुम
शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: २००२
खिले इस तरह तेरे रंग और रूप
जैसे सर्दियों की भीनी-भीनी धूप
अब यह आलम है दिलो-ज़हन का
करता हूँ हर शै में तुझे महसूस
शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: २००३-२००४
नहीं कोई दोस्त मेरा न सही
रक़ीबों से मिल के दिल हल्का करते हैं
सैलाबे-क़लक़ चढ़ता जाता है
पैमाने दर्द के रोज़ छलका करते हैं
शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: २००३-२००४
आतिशे-दोज़ख़ का सोज़ है दिल में
आहो-फ़ुगाँ खा़मोश है दिल में
मैं दीदारे-दिलनशीं को बेताब हूँ
क़लक़ इक हनोज़ है दिल में
शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: २००३-२००४