देखिए दर्द कब तक मुझको सहे
कब तक इठलाये मुझसे
मैं जो रूठा हूँ कब तक मनाये
कभी तो तंग आयेगा मुझसे
देखिए कब छोड़कर जाये
वक़्त रोशनी है
मैं तन्हा जिस्म हूँ
और दर्द परछाईं है
देखिए वक़्त, मैं और दर्द में
कब तक यह नाता रहे
कब तक ज़ख़्म लहू रुलाये
दर्द की ख़ू है ‘तन्हाई’ और ‘ज़ख़्म’
जब तन्हाई होगी
ज़ख़्म को जगह मिलेगी ही
दिल की किसी दीवार पर,
और तब दर्द महकेगा मुस्कुरायेगा
तस्कीं… तस्कीं ही रहेगी
और दर्द… दर्द ही रहेगा
वक़्त की धूप-छाँव में
यह दोनों साँस लेते रहेंगे
शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’