दरिया किनारे वह लड़की बाल सँवारे
क़दमों के निशाँ पर बहते हैं पानी के धारे
दिल की ज़ुबाँ तो दीवाना दिल ही जाने
सभी तो मरते हैं उस पर यह सारे
रह-रहकर आसमानों में उड़ती है चाहत
देखकर उसे दिल को मिलती है राहत
दरिया किनारे वह लड़की बाल सँवारे
क़दमों के निशाँ पर बहते हैं पानी के धारे
जादू है इन फ़िज़ाओं में शबनमी हैं रातें
होती कहाँ है अपनी मुलाक़ातें दो चार बातें
दरिया किनारे वह लड़की बाल सँवारे
क़दमों के निशाँ पर बहते हैं पानी के धारे
दिल की हर धड़कन उसका ही नाम पुकारे
वह आगे-आगे है पीछे हैं उसके सारे
दरिया किनारे वह लड़की बाल सँवारे
क़दमों के निशाँ पर बहते हैं पानी के धारे
शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: १९९८-१९९९
One reply on “दरिया किनारे वह लड़की बाल सँवारे”
nice and sweet flow of words.