मैं कुछ कहता हूँ दिल कुछ कहता है
मेरे ख़ाबों में न जाने कौन रहता है
आया नहीं कभी वह यहाँ पर
फिर भी मेरा दिल उस पर मरता है
हाँ-४, मेरे दिल में कोई रहता है
मेरे दिल में कोई रहता है…
बंद आँखों में उसका चेहरा दिखता है
आँखें खुलती हैं और वो खो जाता है
आया नहीं कभी वह यहाँ पर
फिर भी मेरा दिल उस पर मरता है
हाँ-४, मेरे दिल में कोई रहता है
मेरे दिल में कोई रहता है…
बेबस दिल उसके ही सपने बुनता है
मैं कुछ कहता हूँ दिल कुछ करता है
आया नहीं कभी वह यहाँ पर
फिर भी मेरा दिल उस पर मरता है
हाँ-४, मेरे दिल में कोई रहता है
मेरे दिल में कोई रहता है…
आये वह नज़र जो है बेख़बर
जिस पर मैं फ़िदा हूँ दिल मरता है
आया नहीं कभी वह यहाँ पर
फिर भी मेरा दिल उस पर मरता है
हाँ-४, मेरे दिल में कोई रहता है
मेरे दिल में कोई रहता है….
शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: १९९८-१९९९