Categories
मेरी ग़ज़ल

दीद-ए-खूँबार

मेरी तमन्ना के पाँव में वक़्त के ख़ार चुभते हैं
दिल में निश्तरों से तुम्हारे आज़ार चुभते हैं

क्या करूँ कैसे उबरुँ तक़लीफ़ों के समन्दर में
बर्फ़ के बीच दबे हुए सारे शरार लगते हैं

ज़ुबाँ ख़ामोश हो तो भी एहसास चुप नहीं बैठते
जिगर से बराबर अपनी तक़रार रखते हैं

मसर्रत को सम ग़म को दवा बनाया इश्क़ में
कि अब बिन मुए ही अपनी मज़ार तकते हैं

मुझको तुमसे शिक़ायतें नहीं ख़ुद से बहुत हैं
आजकल ख़ुद को ख़ुद से बेगानावार लगते हैं

कब से दिल में उल्फ़त का इक आबला दुखता है
और मुँहज़ोर तूफ़ानों में सब क़रार बुझते हैं

मवाद बहता है घाव से मान्निद जिगर से ख़ून
बदन में दर्द के सूरज बार-बार उगते हैं

जो तुम देखो मेरी तरफ़ इस उम्मीद में
तेरे नज़रे-करम को दीद-ए-खूँबार रखते हैं


शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: २००३

By Vinay Prajapati

Vinay Prajapati 'Nazar' is a Hindi-Urdu poet who belongs to city of tahzeeb Lucknow. By profession he is a fashion technocrat and alumni of India's premier fashion institute 'NIFT'.

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *