फिर है आँख तर और गुनगुनाती शाम
तेरी दिल से बातें और मुस्कुराती शाम
है नब्ज़ में कम रवानी जाती शाम
फिर है अफ़साना-ए-दिल सुनाती शाम
तेरी तस्वीर से कुछ सुकूँ आये तो आये
फिर है वरगना यह दिल जलाती शाम
मेरा दिल भी दर्द का दामन है ख़ुदा
फिर है वही उदास मुझको रुलाती शाम
सारे शहर में रोशनी का जश्न है आज
फिर दिल में दस्तक-सी जाती शाम
हैं वह सब बहाने याद मुझे आज भी
फिर है यादों के तीर पे तीर चलाती शाम
मेरे प्यार को न दो नाम किसी बीमारी का
फिर है अश्कों के पार झिलमिलाती शाम
‘नज़र’ पूछ क्या-क्या मन्ज़र न देखे
फिर है मुझको तन्हा छोड़ जाती शाम
शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: २००३