दोस्तों, अब कि ख़त उसको तुम लिखो
लिखो कि कोई हद से गुज़र गया
था तेरा दीवाना एक कोई नज़र
थे तुम ज़िन्दा था तेरे बाद मर गया
तेरे आस्ताने पे बैठे देखा था इक दफ़ा
देखा नहीं उसके बाद किधर गया
कोई ख़बर लो उसकी कुछ पता करो
तेरे लिए क्या कुछ न कर गया
मिला दर्दो-साग़र में डूबा हुआ हमें
क़रीब से हमारे बेख़बर गया
ख़ुशी उसके हाथों में रेत-सी दिखती है
हर लम्हा रेत-सा बिखर गया
नज़र हो गया तेरे इश्क़ में तुमको
साथ तेरा हो तो कहे सँवर गया
शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: २००३