पता नहीं होश में हूँ या बेहोश हूँ
लोग कहते हैं बेख़ुदी में मदहोश हूँ
लोग तो पराये हैं इनका नहीं एतबार
चुप हूँ इसीलिए बरसों से ख़ामोश हूँ
अभी देखी नहीं मेरी दीवानगी किसी ने
अपने दिल का दाग़ हूँ सरफ़रोश हूँ
झुठला रहे हैं मुझको सच की तरह
माज़ी के किसी कोने में दबा हुआ जोश हूँ
लिये फिरता हूँ इक बोझ सीने पर
अपनी उजड़ी तमन्नाओं का दोश हूँ
जो बार-बार ख़ुद पर ही उतरा
लगता है जाने क्योंकर कि वही रोश हूँ
भटकता हूँ अपने दिल की ख़ला में
तनहाई का मारा वीरानी का आगोश हूँ
जो डरते हैं असली चेहरा दिखाने से
शायद उनमें से एक नक़ाबपोश हूँ
हद तो की है मैंने ख़ुद पे हर तरह से
जो होकर भी नहीं होश में वही होश हूँ
जिसे चाहत है तुम्हारे प्यार की
सचमुच मैं वही लुटा तख़्तपोश हूँ
शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: २००३