दीवाना हूँ मैं दीवाना तेरा
हाँ तेरा दीवाना…
आज यह जाना मैंने
क्या है यह दिल का लगाना
मुझे जो एक नज़र में हो गया है
उसे समझेगा ना यह ज़माना…
हाँ, मैं डूबा हुआ हूँ
तेरे ख़ाबों में रात-दिन
मुझको लगने लगा है
तेरे बिन-
जीना नहीं अब मुमकिन
यह सारे नज़ारे तुझसे ही जवाँ हैं
तेरा रंग-रूप है,
इन फ़िज़ाओं में समाया…
बेकार ही थी यह ज़िन्दगी मेरी
तूने ही मुझको जीना सिखाया
हाँ, अब जो मेरी ज़िन्दगी में
तू आ गयी है जाने-जाना
बस एक बार यह कह दे कि
जिसकी चाहत थी मुझे
तू है वह दीवाना, मेरा दीवाना
शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: २००२