दिल के दरवाज़े पर दस्तक देता है कोई
रोज़-रोज़ मुझे नये ख़ाबों में मिलता है कोई
याद न आती हो ऐसा कोई पल जाता नहीं
मेरा मन पागल है इसे कोई समझाता नहीं
ख़्याल दिल तक आकर फिर जाता है कभी
इन आँखों पर कोई सागर लहराता है कभी
मैं तन्हा हूँ यहाँ और मेरा दिल खोया है कहीं
रहता हूँ अकेलेपन में मेरा कोई साथी नहीं
फिर भी न जाने क्यों ऐसा लगता है कभी
दिल के दरवाज़े पर दस्तक देता है कोई…
शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: १९९८-१९९९