तुमने पुकारा था जब
मैंने सुना तो था
मगर मेरा ग़ुरूर
मेरे ज़हन पे यूँ चढ़के बैठा था
कि मैंने देखा भी न तेरे जानिब
जाने किस मशक्कत में
रहा होगा तेरा दिमाग़
जाने तुमने क्या-क्या न सोचा होगा
दुबारा जब तुमने
निगाह चुराके देखा था
उस वक़्त भी तो मैं
ग़ुरूर को आगोश में लिए गुज़रा था
वक़्त की नब्ज़ तो
बहुत भारी लग रही थी
उस पहर मुझे…
जाने किस ख़्याल को
बाँहों में भरकर
तुम घर जा रहे थे
पहुँचा तो था मैं
मगर देर से पहुँचा था
वो दिन का चाँद
मेरी हथेली से फिसल चुका था,
जा चुका था…
“कल फिर मिलना होगा
कल फिर नये बहाने होंगे
कोई इशारा बयाँ होगा
लफ़्ज़ तुम्हें नये बनाने होंगे”
दोस्त, माफ़ कर देना मुझे
जो ज़रा भी ग़ुबार हो मन में…
शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: २००२