मेरे ही हाथों में टूटा है दम मेरा
तेरे ही स्पर्श से तख़लीक़ हुआ है
यह ‘विनय’…
नया जन्म हुआ है तो
नये अहसास भी होंगे
अभी-अभी मेरी मुट्ठी में
जन्मी है यह क़िस्मत
खुलेगी जो कई और कई
जीतों के जश्न भी होंगे
जिससे मेरी हर सोच जुड़ी है
सिर्फ़ एक तुम हो!
मेरी इब्तिदा मेरे ये जश्न
सब तुम्हीं से तो हैं…
शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: २००२