एक अधूरी ख़ाहिश लिए
मैं भटक रहा हूँ
दर-ब-दर,
सुनसान ख़ाली सड़कों पर
अँधेरा ही अँधेरा है,
इन अँधेरों ने मेरे
हाथ-पाँव बाँध दिए हैं
और ये तन्हाई
मेरा गला घोंट रही है
शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: १८/अगस्त/२००४
एक अधूरी ख़ाहिश लिए
मैं भटक रहा हूँ
दर-ब-दर,
सुनसान ख़ाली सड़कों पर
अँधेरा ही अँधेरा है,
इन अँधेरों ने मेरे
हाथ-पाँव बाँध दिए हैं
और ये तन्हाई
मेरा गला घोंट रही है
शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: १८/अगस्त/२००४