एक मौसम
जो खु़शबू लाया था
एक वह
जो कभी आया था
ज़्यादा नहीं
ज़रा-सा ग़म दे गया है
टूटा नहीं
शायद ख़ाब बिखर गया है
शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: २०००
एक मौसम
जो खु़शबू लाया था
एक वह
जो कभी आया था
ज़्यादा नहीं
ज़रा-सा ग़म दे गया है
टूटा नहीं
शायद ख़ाब बिखर गया है
शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: २०००