रात धुल गयी
दिन चमक गया
साँस बजती रही
बस,
दिन गुज़र गया
शाम आयी
तन्हा-तन्हा
मील गिनके
चाँद के साथ
अंजान होकर गयी
रातों के चलते रहे
सिलसिले
आज फिर वही
रात आ गयी
वक़्त के फ़ासले
हासिल देते रहे
तेरी कोई आहट
कोई ख़बर न आयी
बुझे-बुझे अश्क़
आँख छू गये
आयी रात हरजाई
मेरा ख़ाब ले गयी
शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: २०००