आज तक नहीं समझा
उस दिन से आज तक
जिस दिन तुझे पहली बार देखा था
क्यों ख़्यालों में तुम
आ जाती हो बार बार
क्यों तुम्हारे ख़ाब की
चाहत करता हूँ…
मैं आज भी किसलिए
तेरा चेहरा अपनी आँखों में
ढूँढ़ता हूँ
आज तक नहीं समझा
उस दिन से आज तक
जब कोई चेहरा
हसीन देखता हूँ
खु़द को शाम के साथ
ग़मगीन देखता हूँ
वो घर जहाँ तुम रहती थी
आज वहाँ कोई और रहता है
फिर भी तुम मुझे
वहीं नज़र आओगी
एहसास ऐसा मुझको
क्यों रहता है
आज तक नहीं समझा
उस दिन से आज तक
क्यों दिल चाहता है
तुम्हारी बातें किसी से
करता रहूँ
क्यों मुझे तुम्हारी यादें
बार-बार बेक़रार करती हैं
यह जो है
ऐसा क्यों है
मुझको क्यों तुम्हारा
इंतज़ार रहता है
क्यों तुझे देखने की ख़ाहिश में
मेरा यह दिल बेताब रहता है
आज तक नहीं समझा
उस दिन से आज तक
तुम्हारी वो झुकी हुई आँखें
वो ज़ुल्फ़ें
जो चेहरे पर गिरी रहती थीं
तुम्हारी हर अदा
तुम्हारे चेहरे के नूर को देखकर
अपने दिल की ख़ाहिश
जो आज तक टूटी नहीं है
तुम्हारा मेरे घर के सामने से गुज़रना
रोज़ाना
मेरी तरफ़ नहीं देख रही हो
जताना
वो निगाहें चुराना
आज तक नहीं समझा
उस दिन से आज तक
जिस दिन तुझे पहली बार देखा था
शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: २०००
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