हमने मुहब्बत में ज़ियाँ और फ़ैज़ न देखा
तुम्हें जो देखा फिर शबो-रोज़ न देखा
सीधे निकल गयी जिगर के पार नज़र
किसी की नज़र को हमने इतना तेज़ न देखा
निगाह ढ़ूँढ़ती रही तुम्हें हर चेहरे में
मगर हमने तुम-सा एक हनोज़ न देखा
तुम्हें ही ढ़ूँढ़ता माज़ी के पन्नों में शीना
हमने बेफ़रदा यह इमरोज़ न देखा
शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’