हम जो उनके ज़ानूँ पे अपना जिगर रखते हैं
तो वह देखकर मेरे ज़ख़्मे-जिगर हँसते हैं
बड़ी बद्-ग़ुमानियाँ हैं हमसे ग़ैरों की तरह
देखते हैं कब तलक दिल पे ज़बर रखते हैं
हैं शबो-रोज़ उन के ख़्याल, उन से फ़िराक़
और वह हैं न इक इनायते-नज़र रखते हैं
दिल में उनके हम भी अपना नाम लिख देंगे
अपनी आहो-फ़ुगाँ में हम वो असर रखते हैं
उनको फ़ुर्सत नहीं हमारी ख़बर की और हम
उनका नाम दिल की दीवारों पर लिखते हैं
‘नज़र’ उनको ख़ुद बताओ, कोई क्यों बताये?
क्यों हम रोज़ शाम अपनी आँखें तर रखते हैं
ज़ानूँ= Knee
शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: २६ जुलाई २००४