हमने अबस की आरज़ू छोड़ दी
तुमको पाने की जुस्तजू छोड़ दी
चाक़ जिगर को गरेबाँ में छिपाके
हमने हसरते-रफ़ू छोड़ दी
बुलाता रहा माज़ी पलट-पलट के
मगर अब इश्क़ की खू़ छोड़ दी
मैं हूँ अधूरी खा़हिशों का मुब्तिला
ग़ालिबन हमने वो बाज़ू छोड़ दी
है आज मौसम बदला-बदला
वो गुफ़्तार वो गुफ़्तगू छोड़ दी
हर जगह पाओगे तुम मुझको
मैंने मेरी नज़र चार-सू छोड़ दी
शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: ३१ जुलाई २००४