वो तस्कीं
न मेरे दर पे माथा टेके
न ही रौज़न से झाँके
सिर्फ़ –
खा़बों को बे-रब्त किए घूमती है
हर गली हर कूचे में
मशहूर हैं,
उसकी वफ़ा के क़िस्से
मगर अब कि
वाक़िया हमारा मशहूर होगा
शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: १३/जून/२००३
वो तस्कीं
न मेरे दर पे माथा टेके
न ही रौज़न से झाँके
सिर्फ़ –
खा़बों को बे-रब्त किए घूमती है
हर गली हर कूचे में
मशहूर हैं,
उसकी वफ़ा के क़िस्से
मगर अब कि
वाक़िया हमारा मशहूर होगा
शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: १३/जून/२००३