इस पुराने शहर में
कुछ पुरानी इमारतें हैं
कुछ खण्डहर हैं
कुछ अजनबी रास्ते हैं
दूर से पत्थर दिखता होगा
बेजान दिल मेरा लगता होगा
छूकर देखो,
दीवारें आज भी साँस लेती हैं
न कहती हैं न सुनती हैं
टूटती-गिरती हैं…
जब भी गुज़रता हूँ
साये मुझको पुकारते हैं
इस पुराने शहर में
कुछ पुरानी इमारतें हैं
कुछ खण्डहर हैं
कुछ अजनबी रास्ते हैं
कितने ख़ाबों के बादल बरसे
कितनी ख़ुशबू की बेले महकीं
हर बार,
नशेमन जलकर खाक हुआ
चिन्गारियाँ,
दिलों में जब-जब दहकीं…
जो भीगकर मिटती हैं
कुछ ऐसी भी इबारतें हैं
इस पुराने शहर में
कुछ पुरानी इमारतें हैं
कुछ खण्डहर हैं
कुछ अजनबी रास्ते हैं
शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: १९ अप्रैल २००३