मेरी मोहब्बत, है तू कहाँ, तू कहाँ है
जिस्म यहाँ, जान कहाँ, जान कहाँ है
तड़प-तड़प कर साँसें जिस्म में पलती हैं
दिन-रात दिल की आहों में जलती हैं
यह मेरा नसीब है या वक़्त का क़तरा
थाम लिया है किसने अब तक न गुज़रा
मुझको आवाज़ दे है तू कहाँ, तू कहाँ है
मेरे हमदम, मेरे हमनवाँ, तू कहाँ है…
नीली शाम यह सूरज जब पिघलता है
गुलाबी चाँद दो बोझल आँखों में गलता है
पतझड़ को शाखों पर किसने सजाया है
टूटे हुए आइने में अक्स अपना दिखाया है
आ तू कभी मेरी बाँहों में आ, तू कहाँ है
मेरे हमसफ़र, मेरे हमनवाँ, तू कहाँ है…
शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: १९ अप्रैल २००३