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मेरी नज़्म

जब बात करते हुए देखता हूँ

तमन्ना बेताब रहती है
और खा़हिश परेशाँ
उदास आईने-
खु़द-ब-खु़द टूटते रहते हैं
राह चलती रहती है
पाँव थक जाते हैं
उम्र कम होती रहती है
साल बढ़ते रहते हैं

रात जागती है आँखों में
दिन वीरान उजाड़ गुज़रता है
उँगलियों में उँगलियों से
और निगाहों को बदन से
जब बात करते हुए देखता हूँ
तेरी याद खा़मोश रह जाती है
कुछ सुलगता रहता है सीने में

तन्हाई का साया न टलता है
दिल की ख़ला न घटती है
अरमान सूखे हुए पत्तों की तरह
ज़मीन पर पडे़ रहते हैं
आँसुओं में भीगते-भीगते
ज़मीन में जज़्ब हो जाते हैं
दफ़्न हो जाते हैं

दिल के टूटने से
फ़र्क साँस लेने लग जाता है
फ़ज़ा तो नहीं बदलती
लेकिन उसकी छुअन
और एहसास के ज़ख़्म हरे हो जाते हैं
लम्हा-लम्हा मन ग़म में डूबता जाता है
और गीला-गीला जलता रहता है
 


शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’

By Vinay Prajapati

Vinay Prajapati 'Nazar' is a Hindi-Urdu poet who belongs to city of tahzeeb Lucknow. By profession he is a fashion technocrat and alumni of India's premier fashion institute 'NIFT'.

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