जला दी याद इक पुरानी’ तेरी कहानी
बुझा दी आज इक शाम की जवानी
न बारिशों के बाद दरख़्त ऊदे रहे
की धूप ने कुछ ऐसी मेहरबानी
ज़मीं रेत का दरया हुई’ निशाँ बह गये
न रहा मसला न रही परेशानी
सफ़्हों के हर्फ़ फिर नम हो गये
बीत गयी वो मद्-मस्त रुत सुहानी
कुछ किताबों में पड़े सूख रहे थे गुलाब
थे कच्ची उम्र की पहली निशानी
दिल का दर्द आस को सहलाता रहा
यूँ कटी तन्हाई में ज़िन्दगी बेमानी
शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: २००४