जो बियाबाँ था उसे सहरा देखा
हल्के रंग को तुमने गहरा देखा
सिफ़रे-सफ़र का मुसाफ़िर हूँ मैं
हर मंज़र को मैंने ठहरा देखा
इबादत के लिए जब बंद की आँखें
ख़ुदा को नहीं मैंने तेरा चेहरा देखा
जिसके दिल को पत्थर समझा मैं
उसको समन्दर से गहरा देखा
कुछ पुरानी यादें पलटीं किताबों में
नाम सफ़्हे-सफ़्हे पे तेरा देखा
ग़म लगा उस हर एक शख़्स को
ऐसा हाल ‘नज़र’ जिसने मेरा देखा
शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: २००४