कब कहाँ रुकें, कब तक चलें
ठहर जायें जहाँ दो पल के लिए
वह मंज़िल है कहाँ? तुम जहाँ
कहानियाँ कहती हों वादियाँ
हर लम्हा रोशन हो प्यार से
जिसको चाहें उसका दीदार मिले
कब कहाँ रुकें, कब तक चलें
ठहर जायें जहाँ दो पल के लिए
वह मंज़िल है कहाँ? तुम जहाँ
ख़ुशियाँ हो दिल में सारे जहाँ की
चाहें जो दिल से वह हमें मिले
पूरे हों सभी अरमान दिल के…
कब कहाँ रुकें, कब तक चलें
ठहर जायें जहाँ दो पल के लिए
वह मंज़िल है कहाँ? तुम जहाँ
जैसे वादे हैं वैसे ही इरादे हैं
यही दुआ है दर्दे-दिल की
जहाँ भी रुकें हम, वहाँ तू मिले
आमीन, आमीन, आमीन, आमीन
शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: १९९८-१९९९