कहाँ गये हो तुम
कहाँ गये हो तुम
ये दूरियाँ कुछ तो करो कम
कहाँ गये हो तुम…
आ जाओ तुम, आ जाओ
साँसों में आ जाओ
लग जाओ सीने से तुम
कहाँ गये हो तुम…
तरस रहा हूँ मैं बरस रहा हूँ मैं
बरस रहा हूँ मैं तरस रहा हूँ मैं
ऐसे न ढाओ सितम, तुम…
कहाँ गये हो तुम
कहाँ गये हो तुम
ये दूरियाँ कुछ तो करो कम
कहाँ गये हो तुम…
दिल से हज़ारों आहें हैं निकली
लगता है यूँ कि टूटी है बिजली
रात और दिन ये आँखें तरसती
डूब रही है तूफ़ाँ में कश्ती
आके सँभालो तुम…
कहाँ गये हो तुम
कहाँ गये हो तुम
आ जाओ तुम
आ जाओ तुम
लग के गले से
हर दूरी मिटाओ तुम
कहाँ गये हो तुम
कहाँ गये हो तुम
ये दूरियाँ कुछ तो करो कम
कहाँ गये हो तुम…
शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: २००१-२००२