खोया-खोया फिरता हूँ
तेरे बिना ज़िन्दगी
तू जो मिल जाये मुझे
सँवर जाये ज़िन्दगी
तू नहीं तो कुछ नहीं
कुछ भी नहीं
क़सम है तुझे मेरी
अब आ भी जा
तू गयी इतनी दूर
मैं रहा तुझको ढूँढ़
प्यार का है असर
ओ मेरी जाने-जिगर
बस मेरी है तू
प्यार है इक इम्तिहाँ
खो गयी है तू
जान हो गयी इन्तिहाँ
खोया-खोया फिरता हूँ
तेरे बिना ज़िन्दगी
तू कहाँ है बता
ओ मेरी दिलरुबा
तेरे बिना रूठ गयी
मुझसे हर ख़ुशी
ओ चाँदनी मेरी
तुझसे ही मेरी ख़ुशी
अब आ भी जा
ओ मेरे हमनशीं
खोया-खोया फिरता हूँ
तेरे बिना ज़िन्दगी
तू जो मिल जाये मुझे
सँवर जाये ज़िन्दगी
शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: १९९८-१९९९