ख़ुदा तुमको मुझसे न छीने
है क़सम वरना मुझको मर जाने की
किस तरह से तुमको चाहूँ
कि तुम मुझको मिल सको
दर्द यह दिल मुझको बेपनाह दे रहा है
क्या करूँ ऐसा कि सुकूँ हो
तदबीर तुम ही निकालो
अपने दीवाने को मुसीबत से बचाने की
क़त्ल मेरा तेरे क़दो-क़ामत ने किया
और धज्जी-धज्जी तेरे जाने ने
एक बार फिर तस्वीर में तुम्हें देख के
सीने में साँस सुलग उठी है
वज़नी साँसों से जिगर बैठ रहा है
है इल्तिजा तुमसे तुम्हें पाने की
नसीब, क़िस्मत, तक़दीर, मुक़द्दर
सब में लिख दे वह तेरा नाम
जिस तरह मेरे दिल पे लिखा है
जिस तरह मेरी जाँ पे लिखा है
हो तुम मेरी मोहब्बत
न रखो ख़ाहिश मुझको आज़माने की
ख़ुदा तुमको मुझसे न छीने
है क़सम वरना मुझको मर जाने की
शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: २००४