महफ़िले-उश्शाक़ में आशिक़ हम-सा न पाओगे
बेकार की बातें हैं सभी दिल को कब तक जलाओगे
सहर में शुआ शाम को माह बनके निकलते हो
जिगर में बस गये हो जी को कब तक दुखाओगे
आँखों से हाल बयाँ करना माशूक़ की अदा होती है
देखते हो चुपके-चुपके आँखें कब तक चुराओगे
जो कहोगे हम वही कर गुज़रेंगे दिल से
कब तक करोगे जफ़ाएँ हमें कब तक आज़माओगे
साल यह भी ज़ाया किया हरजागरदी में हमने
होकर जी से नाचार जीते हैं कब तक लौट आओगे
शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: २००३