मस्तियाँ ही मस्तियाँ हैं
जब से मौसमे-ख़िज़ाँ उतरा है
शाख़ों पर हैं नयी कोंपलें
जब से मौसमे-फ़ुर्क़त गुज़रा है
पुरवाइयाँ तन-बदन पे आग लगती हैं
तन्हाइयाँ मेरे ज़हन से ख़ौफ़ रखती हैं
निगाह में तस्वीरे-यार सजा ली जब से
रंगीनियाँ दिल को ख़ुशगँवार लगती हैं…
मस्तियाँ ही मस्तियाँ हैं
जब से मौसमे-ख़िज़ाँ उतरा है
बेलों पर महके गुच्छे
जब से हुआ यह मौसम हरा है
मेरी बेक़रारियाँ आज क़रार पाने लगी हैं
यह धड़कनें तेरा नाम गुनगुनाने लगी हैं
इक अजब भँवर-सा उमड़ा है ख़्यालों का
ख़ाबों ख़्यालों की भीड़ राह पाने लगी है…
मस्तियाँ ही मस्तियाँ हैं
जब से मौसमे-ख़िज़ाँ उतरा है
पैमाने सारे भर गये हैं
बादाख़ार हुआ यह दिल ज़रा है
सूरज है हुस्न उसका, जलाता है मुझको
बदन रेशमी चाँद जैसा, लुभाता है मुझको
तक़दीर जो उसने ‘ जोड़ ली है मुझसे
आज मौसम बहार का, बुलाता है मुझको…
मस्तियाँ ही मस्तियाँ हैं
जब से मौसमे-ख़िज़ाँ उतरा है
मेरे लिए उसकी चाहत
आज तो उसका दिल भी ख़रा है
शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: २००४
4 replies on “मस्तियाँ ही मस्तियाँ हैं”
behad khubsurat
सद-शुक्र महक जी!
सूरज है हुस्न उसका, जलाता है मुझको
बदन रेशमी चाँद जैसा, लुभाता है मुझको
तक़दीर जो उसने ‘ जोड़ ली है मुझसे
आज मौसम बहार का, बुलाता है मुझको…
inko padhkar mujhe bahut purana mera ek geet yaad aaya.
Ek khatka sa hua tha aaj ki raat
Maine alsaayee hui angdaai lee
Raat bhoo ki komal hatheli pe
Mast meh ne mehndi rachaayee thi
Dekha jharokha hata ke jo maine
Husn ka parda zara sarka sa diya
Aisa dilkasheen nazaara tha
Yeh dhara chaandni nahayee thi
Ab to khamosh hain ghatayen
Waqt bhi hai kuchh ruka ruka sa
Raat ek toofan tha mere dil main
Aur kuch thehri hui tanhai thi
itna hasin chehra koi ku na mohhabt kar bathe.
hum to kuch bhi na chahte the aapse ,
na jane mohabbt kiase kar bethe.
tumhe banane se pehle woh betha raha jis anjuman me
kahi wohi kata na kar bethe.
hum to dewane hai aapke,
kahi khuda bhi aapka aashik na ban bethe.