वह इक पल संजो लिया है
आँख में रखके भिगो दिया है
महक रहे हैं वह सारे लम्हे
ख़ुद को उनमें डबो दिया है
ख़ुश-रू तेरी मीठी-मीठी बातें
उफ़ तौबा यह हिज्र की रातें
धुँधले-धुँधले चाँद के चेहरे
गुज़र रही हैं मिसरी जैसी रातें
सोया जाऊँ यह रात तो गुज़रे
सुबह आयें तेरे ख़ाब सुनहरे
मुझको जगा दे उससे मिला दे
यार से मिलके यह ख़िज़ाँ उतरे
महक रहे हैं जो फूल गुलाबी
मद्धम धूप इनपे बिछा दी
अपने दिन यूँ ही गुज़रते हैं
किसकी आँखों ने शाम दिखा दी
शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: २००४
3 replies on “वह इक पल संजो लिया है”
Hmmm……
Chaand aapki writings mein qaafi dikhayee deta hai…..what does it mean to you?
Bahut khoobsoorat geet hai
आपके इस सवाल का जवाब उतना ही मुश्किल है जितना कि मेरी बीती ज़िन्दगी के सफ़्हे, इतना confusion और इतना haze की समझ ही नहीं आया, मैं क्या करूँ, इसका उत्तर सोचकर दूँगा शायद कुछ घंटों के बाद!
but tell me one thing…this linkedin profile is yours
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Khud ko main baant na daloon kaheen daman daman
Kar diya tune agar mere hawaale mujhko…..
Main kaun hoon? Always a difficult question to answer….