मेरी अँजुरी में डार दो
चाहे दो-चार बूँद ही
पर डार दो ‘चाँद की मिसरी’
ख़ाली-ख़ाली कोई रात न आये
रात जो आये चाँद भी आये
ख़ाक पड़े तो यह जान जले
जान जले तो पहचान मिले
मेरी अँजुरी में…
ख़ामोशी से कुछ भी न करना
करके कुछ ख़ामोश न रहना
भूल जाओ तो रात जगा देना
भूल जाऊँ तो सुबह मिला देना
मेरी अँजुरी में…
शाख़ें पहने पीले पत्तों के कंगन
पहले ही महका देना मेरा आँगन
कहाँ तक जाऊँगा बता देना
मेरी हर ख़ाहिश राह बना देना
शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: २००१-२००२