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ख़त/पयाम

मेरी बाइसे-ज़ीस्त

मेरी बाइसे-ज़ीस्त,

तुमको इक नज़र देखने के बाद मैं क्यों मुदाम तुम्हारी जानिब खिंचता रहता हूँ? क्यों इक कशिश मुझको बारहा तुम्हारे तस्व्वुर के दाम में बाँध लेती है? क्यों तुम शबो-रोज़ कभी ख़्यालों की भीड़ में कभी ख़ाबों के चमन में मुझे मिल जाती हो? क्यों मुझे हर शय तुम्हारा ही अक्स लगती है? क्यों तुम मेरी ख़ाहिश मेरा अरमान बन गयी हो? क्यों मुझे तुम्हारी अदा, तुम्हारी तीर जैसी बातें, तुम्हारी मुस्कुराहट बारहा रह-रहकर याद आती है? क्यों मैं हर लम्हा सुकूनो-सबात से दूर रहता हूँ? क्यों मैं सिर्फ़ तुम्हारी उल्फ़त की तमन्ना करता हूँ? क्यों मैं तुम्हारे साथ अपनी ज़िन्दगी, सभी पहर, सभी लम्हे गुज़ारना चाहता हूँ? क्यों मैं सबा के लम्स में तुम्हारे हाथों का लम्स ढूँढ़ता हूँ? क्यों मुझको ऐसा लगता है कि गुलों में तुम्हारा रंग शामिल है? क्यों मुझे गुलों की ख़ुशबू से तुम्हारा एहसास होता है? शाम तले, ख़ामोश उदासियों में चाँद क्यों तुम्हारी बात करता है? क्यों मैं हर टूटते सितारे से तुमको माँगता हूँ? क्यों मुदाम ज़ुबाँ पर तुम्हारा नाम रहता है? क्यों उदासी और तन्हाई का दर्द मुझे मीठा लगता है? क्यों मेरी आँखें मुदाम राह पर तेरा इन्तिज़ार करती हैं? क्यों दिल की धड़कनों में नब्ज़-नब्ज़ तुम्हारा नाम ज़ाहिर होता है? क्यों फ़ज़िरो-शाम तुम्हारा रंग मेरी आँखों में छाया रहता है? क्यों यह लगता है कि तुम्हारे शीरीन लबों की ख़ामोश सदा मुझे बुला रही है? क्यों दर्दो-ग़म व फ़रहतो-शाद के दर्मियाँ बजाय दीवार मैं खड़ा हूँ? ख़ुदा की इतनी बड़ी कायनात में मैं ख़ुद को कितना तन्हा महसूस कर रहा हूँ तुम बिन… शायद यह तुम समझ पाओ… शायद इसका बाइस तुमपे खुले… इसलिए यह ख़त तुम्हें भेज रहा हूँ…|

तुम्हारा शैदाई


शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’

By Vinay Prajapati

Vinay Prajapati 'Nazar' is a Hindi-Urdu poet who belongs to city of tahzeeb Lucknow. By profession he is a fashion technocrat and alumni of India's premier fashion institute 'NIFT'.

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