यह यादें तो ऐसी हैं जैसे मेरी परछाईं
जब तक अंधेरे में चलते रहे
तब तक हम दोनों साथ नहीं
जहाँ उजालों की ओर मुड़े
फिर से मेरे दिल पर आयीं
यह यादें वह तो नहीं
जिनको काग़ज़ पर लिखकर मिटा दें
यह वह लम्हे तो नहीं
जिनको कहानियाँ समझकर भुला दें
यह यादें तो ऐसी हैं जैसे मेरी परछाईं
जब तक अंधेरे में चलते रहे
तब तक हम दोनों साथ नहीं
जहाँ उजालों की ओर मुड़े
फिर से मेरे दिल पर छायीं
यह वह चाँद तो नहीं
जिनको काले बादलों की शालें उढ़ा दें
यह वह पंक्षी तो नहीं
जिनको दिल-क़ैद के पिंजड़े से उड़ा दें
यह यादें तो ऐसी हैं जैसे मेरी परछाईं
जब तक अंधेरे में चलते रहे
तब तक हम दोनों साथ नहीं
जहाँ उजालों की ओर मुड़े
फिर से मेरे दिल पर आयीं
यह वह फ़िज़ा की हवाएँ हैं
आठों पहर जो दिल में आएँ-जाएँ
यह बिन बादलों के
आकाश के घट से पानी छलकाएँ
यह यादें तो ऐसी हैं जैसे मेरी परछाईं
शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: १९९८-१९९९