अम्बर में जब चाँद खिला
उस पल से चला जानाँ
एक नया सिलसिला
मुहब्बत भरी वादियों में
इक नया गुल खिला
तुम एक नया सिलसिला
तुम जान मेरी अजंता
जिस पर यह दिल मचला
वह तुम हो मेरी चंद्रकला
फ़िज़ाओं में जादू घुला
जब तुमको देखा ऐसा लगा
मेरा जीवन जैसे शिला
अम्बर में जब चाँद खिला
उस पल से चला जानाँ
एक नया सिलसिला
तुम मेरा माहताब
तुम पानी में जलता चराग़
तुम एक नया सिलसिला
तेरी शमा से रोशन हुआ
पहले था यह दिया बुझा-बुझा
तेरी हर अदा, तू इक नशा
तुमसा हसीन पहले न मिला
मेरे ख़ुदा से मुझको
कभी रहा नहीं कोई गिला
अम्बर में जब चाँद खिला
उस पल से चला जानाँ
एक नया सिलसिला
उसकी रहमत है जो
उसने बनायी ऐसी कला
तुम एक नया सिलसिला
तुम हो मेरी चंद्रकला,
तुम जान मेरी अजंता
तुम एक नया सिलसिला
शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: १९९८-१९९९