मोहब्बत ने सदा की तो दुनिया का डर निकल गया
बदन में साँसों का बुझा हुआ इक चराग़ जल गया
बे-दर्द के दिल में दर्द का असर यूँ देखा आज
मेरे इक आँसू की गर्मी से उसका दिल पिघल गया
तेरे रूप को बेसुध तकता रहा मैं बरसों तक
इस हुस्न के आगे हर ख़ुर्शीदो-माह1 ढल गया
तेरी आँखों ने फ़िज़ा को जाने किस अदा के साथ देखा
चार-सू बेज़ार-सा एक मौसम बहार में बदल गया
तेरे प्यार की छाँव ने मुझे सहारा इस तरह दिया
कि तेरी ख़ुशी का साया मेरे हर ग़म को छल गया
बड़ी बेताबी थी आठों पहर कश्मकश का समाँ था
तेरे मुस्कुराने भर से ही बेताब दिल बहल गया
ग़ालिब से कहो जाकर उसने सच कहा था इक रोज़
‘नज़र’ के दिमाग़ में भी पड़ इश्क़ का ख़लल गया
शब्दार्थ:
1. सूरज और चाँद, Sun and Moon
शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: २००४