मुझको यूँ प्यार कैसे हो गया
उफ़! यह दिल सौदाई हो गया
मुझको कुछ पता ही न चला
इक दम में यह सब हो गया
रोज़ तेरे ख़्यालों में डूबा रहा
शब तेरे ख़ाब में मैं खो गया
जिस शै पर मैंने निगाह की
वह हर शै तेरा चेहरा हो गया
दर्द की तस्कीं थोड़ी अजीब है
तू मुदाम मेरे दिल के क़रीब है
उसपे ये जुनूँ भी मेरा हरीफ़ है
बुत की अदा पे दिल आ गया
मुझको यूँ प्यार कैसे हो गया
उफ़! यह दिल सौदाई हो गया
ख़ुद से बयानबाज़ी करते रहे
हम तो यारों ख़ुद से लड़ते रहे
दिल पे ज़रा भी ज़ोर न चला
बराबर उसके आस्ताँ को गया
मुझको यूँ प्यार कैसे हो गया
उफ़! यह दिल सौदाई हो गया
मुझको कुछ पता ही न चला
इक दम में यह सब हो गया
शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: १३ मई २००३