ना लाओ ज़माने को तेरे-मेरे बीच
दिल का रिश्ता है तेरे-मेरे बीच
तंगिए-दिल से पहलू को छुटाओ
गरज़ को न लाओ तेरे-मेरे बीच
लख़्ते-दिल आँखों से रिसते हैं
ये फ़ासला क्यों है तेरे-मेरे बीच
किसी ग़ैर के कहे पे मत जाना तुम
हैं आज ग़ैर क्यों तेरे-मेरे बीच
जलता है मेरा कलेजा तुम बिन
इक अफ़साना है तेरे-मेरे बीच
ख़ुदा जाने मेरा दर्दे-दिल
जो आग है बुझा दो तेरे-मेरे बीच
शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: २००४
3 replies on “ना लाओ ज़माने को तेरे-मेरे बीच”
बढ़िया , नज़र साहब ।
आपकी ज़र्रानवाज़ी का शुक्रिया साहिब !
lol.. i cant write in Hindi but its nice poem